www.hamarivani.com

Thursday, October 2, 2008

अरे मूर्ख बताशा मत फोड़


अरे मार डाला, अब बस भी करो. कितना नहालाओगे. अभी तो वाइरल ढंग से ठीक भी नही हुआ....डाक्टरों ने भीगने के लिए मन किया है. कम्बखतों.. मलेरिया हो जायेगा....बेचारे भोलेनाथ भक्तों के आगे 'कम नहलाओ, पानी बचाओ' का नारा लगा रहे थे तब तक एक भक्त ने थोक में रोली उठाई और भगवान् की आँख में दे मारी. भगवान् बिलबिला उठे...अरे मार डाला बचइयो रे...कोई है जो मेरी मदद करे...बड़ी देर से भगवान् की कराह सुन रहे कोने में खड़े भगवान् राम से उनका दुःख देखा न गया. वे अपने स्थान पर ही जमे जमाये बोले क्या हुआ प्रभु, सुबह-सुबह आपने 'हल्ला मचाओ अभियान' क्यों चला रखा है? कहीं फिर से भूत-प्रेतों ने भूतलोक की मांग को लेकर आन्दोलन तो नही कर दिया?
...या फिर गोरा मैया 'कैलाश महिला संगठन' बनाने की जिद पर अडी हैं? अरे नही रे प्रिय राम...अगर ऐसा होता तो कोई न कोई समाधान जरूर निकालता. पर इन भक्तों का क्या करू? हर रोज ये मेरा कचूमर निकाल देते हैं. पिछले महीने सावन में इन्होने मेरी वो गत की थी कि शरीर अभी तक दुःख रहा है. नहला-नहला कर जुकाम कर डाला. बेचारी पार्वती भी मायके जाना कैंसिल कर मेरे विक्स लगाती रहीं. बड़ा परेशान हूँ भ्राता, कोई आँख में पानी daal जाता है तो कोई नाक में.कल तो हद हो गई, एक भक्त जाने कहाँ से ढूँढ ढांड कर प्योर ढूढ़ ले आया, उसने मेरी दोनों आंखों में ऐसा दूध घुसाया की घंटे भर तक आँख नहीं खुली.(शुक्र है की मेरी तीसरी आँख है)
मैं हर रोज भक्तों को समझाता हूँ कि मैं भाव का भीख हूँ, रोली चावल का नही, पर भक्त हैं कि मानते ही नही....भगवान शिव का क्रंदन सुनकर दुर्गा माँ दौडी चली आयीं. कहने लगी..आप ठीक कह रहे हैं प्रभु. घायल कि गति घायल जाने. नवरात्रि में भक्तिने मेरी जो गत बनाती हैं, वो में ही जानती हूँ. पिछली बार एक भक्तिन ने मेरे मुह पर इतनी जोर से बताशा फोड़ा था कि होठ सूज गया. में कहती रह गई, अरे मूर्ख बताशा मत फोड़, पर हमारी सुनने वाला कौन है आँख-कान के अंदर रोली घुसाना तो दूर कि बात, कोई-कोई तो ऐसे जोर से नारियल मारती है कि ठीक मेरी खोपडी पर ही लगता है. बाय गोद दुखी हूँ. भक्तों ने हमें गुड्डा गुडिया समझ लिया है.कभी हमारी मूर्तियों को जबरदस्ती दूध पिलाने लगते हैं तो कभी कहते हैं कि भगवान् रो रहे हैं. वार्तालाप का यह दौर चल ही रहा था कि तभी एक धतूरा शिवजी कि आँख से जा टकराया. इससे पहले कुछ और आता दिखाई देता, आँख-नाक बंद कर प्रभु बैठ गए ध्यान में.